समाज को बांटने के लिए सोशल मीडिया जिम्मेदार? अमेरिकी रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा!

Curated By: editor1 | Hindi Now Uttar Pradesh • 05 Sep 2025, 11:25 am
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सोशल मीडिया को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। इसके मुताबिक ध्रुवीकरण और समाज को बांटने के लिए सोशल मीडिया सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। आइये पूरा अपडेट जानते हैं।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर तेजी से बढ़ता ध्रुवीकरण (पोलराइजेशन) अब लोकतंत्र के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। अमेरिका स्थित सोशल साइंस रिसर्च काउंसिल (एसएसआरसी) की हालिया अंतरराष्ट्रीय स्टडी के मुताबिक सोशल मीडिया एल्गोरिद्म इस तरह काम करते हैं कि यूजर को बार-बार उन्हीं विचारों से जुड़ी सामग्री दिखाई जाती है, जिससे समाज में असहिष्णुता फैलती है और सांस्कृतिक व राजनीतिक विभाजन और मजबूत होता है। इस अध्ययन में अमेरिका, यूरोप, भारत, ब्राजील और दक्षिण-पूर्व एशिया के डाटा का विश्लेषण किया गया है।


रिपोर्ट के मुताबिक चुनावी वर्षों और बड़े राजनीतिक आंदोलनों के दौरान इको चैंबर इफेक्ट (भरमार वाली सामग्री) का प्रभाव सबसे अधिक होता है। इससे उपयोगकर्ता एक ही विचारधारा वाली सामग्री तक सीमित हो जाते हैं, जिसके चलते फेक न्यूज और नफरत फैलाने वाले कंटेंट का प्रसार बढ़ता है। अध्ययन में सामने आया कि राजनीतिक ध्रुवीकरण सबसे बड़ी समस्या है। लोग अपने विरोधियों से संवाद करने के बजाय उन्हें ब्लॉक या अनफॉलो करना पसंद करते हैं। सांस्कृतिक स्तर पर भी धार्मिक और जातीय बहसें अब और ज्यादा आक्रामक हो चुकी हैं। खासकर 18 से 30 वर्ष की आयु वर्ग के युवा सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं, क्योंकि वे समाचारों का प्रमुख स्रोत सोशल मीडिया को मानते हैं।


62 फीसदी लोगों ने माना, समाज को बांट रहा सोशल मीडिया

भारत के संदर्भ में अध्ययन के निष्कर्ष बेहद चिंताजनक हैं। यहां 62 प्रतिशत उपयोगकर्ताओं ने स्वीकार किया कि ऑनलाइन राजनीतिक चर्चाओं ने समाज को और ज्यादा विभाजित कर दिया है। 45 प्रतिशत युवाओं ने माना कि वे केवल उन्हीं पेजों और ग्रुपो को फॉलो करते हैं जो उनकी विचारधारा से मेल खाते हैं। धार्मिक पहचान से जुड़े कंटेंट को औसतन 70 प्रतिशत अधिक शेयर और रीट्वीट किया गया है। 2024 के आम चुनावों और उसके बाद हुए राज्य चुनावों के दौरान फेक न्यूज और हेट स्पीच सामान्य दिनों की तुलना में तीन गुना बढ़ गई।


सोशल मीडिया संवाद का मंच कम, विरोधियों को ट्रोल करने का औजार

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर संजय कुमार का कहना है कि भारत में सोशल मीडिया संवाद का मंच कम और विरोधियों को कलंकित करने का औजार ज्यादा बन गया है। वहीं सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी, बेंगलुरु की शोधकर्ता निशा माथुर ने कहा कि चुनावी वर्षों में गलत सूचनाओं की बाढ़ सोशल मीडिया पर आम बात है, क्योंकि एल्गोरिद्म क्लिक और शेयर वाली सामग्री को ही प्राथमिकता देते हैं। अध्ययन यह भी दर्शाता है कि भारत के 60 प्रतिशत युवाओं की राजनीतिक राय सोशल मीडिया से प्रभावित होती है। महिला यूजर्स को ऑनलाइन बहसों में पुरुषों की तुलना में दोगुनी ट्रोलिंग झेलनी पड़ती है। वहीं हिंदी और बंगाली भाषा के प्लेटफॉर्म्स पर राजनीतिक ध्रुवीकरण अंग्रेजी की तुलना में लगभग 40 प्रतिशत अधिक पाया गया है।


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