मऊ का होनहार युवा, 20 साल की उम्र में लिख डालीं दो किताबें, कभी साइकिल से बेचता था मसाला

Curated By: editor1 | Hindi Now Uttar Pradesh • 03 Aug 2025, 01:14 pm
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उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर मऊ के अरुण चौरसिया ने 20 साल की हैरत में डाल देने वाली उपबल्धि हासिल की है। उन्होंने इस छोटी सी उम्र में दो किताबें लिखकर साहित्य और पत्रकारिता में अपनी पहचान बनाई है। उन्होंने मास्टर्स करते हुए नेट-जेआरएफ भी पास किया है। आइ

मऊ के गरथौली गांव से ताल्लुक रखने वाले 20 वर्षीय अरुण चौरसिया ने अपनी मेहनत और लेखनी के दम पर साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में खास पहचान बना ली है। अरुण ने इंजीनियरिंग या सरकारी नौकरी जैसे पारंपरिक विकल्पों छोड़कर लेखन और पत्रकारिता को अपना जुनून बनाया। लखनऊ में पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान उन्होंने अपनी पहली पुस्तक ‘प्रेमावली’ लिखी और अब मास्टर्स के पहले साल में उनकी दूसरी किताब ‘मैं मणिकर्णिका हूं’ भी प्रकाशित हो चुकी है। यह किताब काशी के मणिकर्णिका घाट पर आधारित है, जिसमें पुनर्जन्म, अघोरी जीवन, मृत्यु के रहस्य और आध्यात्मिकता जैसे विषयों को गहराई से प्रस्तुत किया गया है। इसके साथ ही अरुण ने नेट-जेआरएफ परीक्षा उत्तीर्ण कर और प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम करके अपनी प्रतिभा को साबित किया है।


इंजीनियरिंग छोड़ पत्रकारिता और साहित्य को अपनाया
अरुण ने अपनी स्कूली पढ़ाई मऊ में पूरी की, लेकिन उनका झुकाव न तो इंजीनियर बनने की ओर था और न ही किसी सरकारी नौकरी की ओर। उन्होंने पत्रकारिता का रास्ता चुना और लखनऊ से पढ़ाई की शुरुआत की। पढ़ाई के दौरान ही उनका रुझान लेखन की ओर बढ़ा और उन्होंने कॉलेज के दूसरे वर्ष में ‘प्रेमावली’ नाम से अपनी पहली किताब लिखी। इसके बाद तीन वर्षों की मेहनत और शोध के बाद उन्होंने ‘मैं मणिकर्णिका हूं’ पूरी की। यह किताब सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि उनके लिए एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा रही, जिसने उन्हें जीवन और मृत्यु के गूढ़ अर्थों से परिचित कराया। अरुण बताते हैं कि काशी जैसे प्राचीन नगर के अघोरी, मृत्यु संस्कार और पुनर्जन्म की अवधारणाओं को समझने में उन्हें गहरी रिसर्च करनी पड़ी।


चुनौतियों से भरा रहा सफर
अरुण की जिंदगी संघर्षों से भरी रही है। कोरोना लॉकडाउन के दौरान, जब देशभर में कामकाज ठप पड़ा था, तब उन्होंने मऊ की गलियों में साइकिल पर मसाले बेचकर घर चलाने में योगदान दिया। उनके माता-पिता एक छोटी सी दुकान चलाते हैं और आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने अरुण को पढ़ने के लिए शहर भेजा। तमाम आर्थिक परेशानियों और सामाजिक दबावों के बीच अरुण ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में मास्टर्स किया और साथ ही नेट-जेआरएफ परीक्षा पास की। इसके अलावा उन्होंने कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम कर व्यावहारिक अनुभव भी हासिल किया।


अरुण बोले- युवाओं को मल्टी टैलेंटेड होना होगा
अरुण मानते हैं कि आज का युवा बेहद प्रतिभाशाली है, बस उसे अपनी दिशा पहचाननी होगी। उनका मानना है कि केवल पढ़ाई में नंबर लाना ही काफी नहीं, बल्कि लेखन, पब्लिक स्पीकिंग, चित्रकला, वीडियोग्राफी जैसे हुनर भी जरूरी हैं। वे कहते हैं कि युवाओं को अपनी रूचि के विषयों में पढ़ना चाहिए, जिससे वे खुद को बेहतर समझ सकें। उनके अनुसार, सिर्फ नौकरी पाना ही जीवन का लक्ष्य नहीं होना चाहिए, बल्कि आत्मविकास और समाज को कुछ लौटाना भी उतना ही जरूरी है। अरुण युवाओं को प्रेरित करते हैं कि वे सिर्फ किताबों के पाठ्यक्रम तक सीमित न रहें, बल्कि हर वह चीज पढ़ें और सीखें जो उनके भीतर कुछ नया जगाए।


सपनों को हकीकत में बदलने की मिसाल
अरुण चौरसिया की कहानी किसी फिल्म की स्क्रिप्ट से कम नहीं लगती। एक छोटे से गांव से निकलकर तमाम संघर्षों और कठिनाइयों का सामना करते हुए उन्होंने जिस मुकाम को हासिल किया है, वह काबिल-ए-तारीफ है। न केवल उन्होंने शिक्षा पाई बल्कि साहित्य और पत्रकारिता में अपनी अलग पहचान भी बनाई। उनके द्वारा लिखी गई किताबें इस बात का प्रमाण हैं कि अगर इंसान के भीतर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, तो वह किसी भी परिस्थिति को मात दे सकता है। अरुण आज मऊ ही नहीं, बल्कि पूरे देश के युवाओं के लिए एक प्रेरणा हैं, जो यह सिखाते हैं कि बड़े सपने देखो और उन्हें हकीकत में बदलने का साहस रखो।

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