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Hindi Now Uttar Pradesh • 30 Oct 2025, 10:06 pm
उत्तर प्रदेश की ग्रेटर नोएडा इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (GNIDA) के अधिकारियों की हीरो बनने की कोशिश ने एक बार फिर अथॉरिटी की थू-थू करा दी है। इंडस्ट्रियल प्लॉट अलॉटमेंट की लीज को मनमानी तरीके से कैंसिल करने पर कोर्ट ने अथॉरिटी को जमकर फटकार लगाई है। साथ ही कोर्ट ने अथॉरिटी को कंपनी के नाम दोबारा डिमांड लेटर जारी करने का आदेश दिया है। दरअसल गलती करने के बाद योगी सरकार के प्रिंसिपल सेक्रेटरी ने सुधार का मौका भी दिया था, लेकिन अथॉरिटी के अधिकारी उनके खिलाफ ही हाई कोर्ट पहुंच गए। अब गलत तर्कों के साथ कोर्ट पहुंचे अथॉरिटी के अधिकारियों को अपनी ही मुंह की खानी पड़ी है। कोर्ट ने अधिकारियों को सरकार के निर्देशों को मानने के निर्देश दिए हैं।
गौरतलब है कि प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी और इंडस्ट्रियल सेक्टर के बीच चल रही तनातनी अब एक बड़ी कानूनी बहस में बदल चुकी है। यही वजह है कि अपनी सख्ती और अनुशासन के लिए जानी जाने वाली ग्रेटर नोएडा इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी आज खुद अदालत की टिप्पणियों का सामना कर रही है। दरअसल, मामला एक इंडस्ट्रियल प्लॉट की लीज कैंसिलेशन से जुड़ा है। 23 अप्रैल 2021 को अथॉरिटी के अधिकारियों ने बिना नोटिस एक कंपनी की लीज कैंसिल की थी। कंपनी को नॉलेज पार्क-5, प्लॉट नं. 47 (24,224 वर्गमीटर) का इंडस्ट्रियल प्लॉट आवंटित किया गया था। आरोप था कि कंपनी ने न तो तय शर्तों के मुताबिक जमीन का उपयोग किया और न ही पूरी किस्तों का भुगतान किया। इस पर अथॉरिटी ने बिना नोटिस जारी किए और कंपनी को बिना मौका दिए, सीधे लीज़ कैंसिल करने का आदेश पारित कर दिया।
अथॉरिटी के खिलाफ कंपनी ने की शिकायत तो बहाल किया गया अलॉटमेंट
कंपनी ने इस निर्णय को राज्य सरकार के सामने रखा तो प्रिसिपल सेक्रेटरी ने 19 जुलाई 2024 को कंपनी के पक्ष में आदेश पारित किया और लीज बहाल करने का आदेश दिया। प्रिंसिपल सेक्रेटरी ने कहा कि लीज रद्द करने की कार्रवाई गलत थी, इसलिए अलॉटमेंट बहाल किया जाता है। 23 अप्रैल 2021 से आदेश की तारीख तक का समय फ्री एक्टटेंशन पीरियड माना जाएगा। कंपनी पहले ही कोविड-19 अवधि के जीरो पीरियड का लाभ ले चुकी थी। बकाया भुगतान दो किस्तों में स्वीकार किया जाए और प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए एक्सटेंशन शुल्क लेकर समय बढ़ाया जाए। सरल शब्दों में कहें तो राज्य सरकार ने कंपनी को दूसरा मौका देते हुए कहा कि GNIDA ने बिना पूरी प्रक्रिया अपनाए जल्दबाज़ी में कार्रवाई की थी। प्रिंसिपल सेक्रेटरी के आदेश से नाराज GNIDA ने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और सरकारी आदेश को चुनौती दे दी।
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कोर्ट ने पूछा लीज रद्द करने से पहले नोटिस दिया? चुप हो गए अधिकारी
कोर्ट में अथॉरिटी ने तर्क दिया कि कंपनी ने भुगतान नहीं किया और न ही जमीन पर कोई काम शुरू हुआ। ऐसे में उसे राहत देना कानून के खिलाफ है। दावा किया गया कि जब यह मामला पहले से ही इलाहाबाद हाईकोर्ट (मुख्य बेंच) में लंबित था, तो प्रिंसिपल सेक्रेटरी को इसका रिवीजन सुनने का अधिकार नहीं था। अथॉरिटी ने खुद को “सख्त और निष्पक्ष संस्था” बताते हुए कहा कि उसकी कार्रवाई जनहित में की गई थी। मगर कोर्ट में ऑथोरिटी खुद ही फंस गई। जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच ने GNIDA से पूछा कि क्या आपने लीज रद्द करने से पहले एक साल का नोटिस दिया था? क्योंकि U.P. Industrial Area Development Act, 1976 की Section 7 के तहत साफ लिखा है कि अगर कोई अलॉटी पांच साल में जमीन का उपयोग नहीं करता, तो अथॉरिटी को एक वर्ष का नोटिस देना होगा। अगर उस अवधि में भी कोई काम न हो, तभी लीज रद्द की जा सकती है। GNIDA के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था, बस सीधे रद्दीकरण आदेश दे दिया गया।
हाईकोर्ट ने अथॉरिटी को जमकर लगाई फटकार, अलॉटमेंट बहाल करने के आदेश
अथॉरिटी की तरफ से गलत तरीके से जमीन आवंटन के रद्दीकरण पर कोर्ट ने जमकर फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि तुम कानून के ऊपर नहीं, कानून तुम्हारे ऊपर है। कानून में जो प्रक्रिया तय है, उसका पालन किए बिना कोई भी अथॉरिटी किसी अलॉटी की लीज रद्द नहीं कर सकती। ऐसा करना मनमानी है और यह कानून का उल्लंघन है। अदालत ने यह भी पाया कि इसी मामले में एक दूसरी कंपनी को समान परिस्थितियों में राहत दी जा चुकी थी और GNIDA ने उस आदेश को स्वीकार भी किया था, लेकिन Focus Computech के साथ ऐसा नहीं किया गया जो कोर्ट के मुताबिक भेदभावपूर्ण रवैया था। कोर्ट ने माना कि प्रिंसिपल सेक्रेटरी का आदेश कानून के अनुरूप है, जबकि GNIDA की दलीलें कमजोर थीं। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए सख्त निर्देश दिए और कहाकि अथॉरिटी दो हफ्तों के भीतर राज्य सरकार के आदेश का पालन करे और कंपनी को नया डिमांड नोटिस जारी करे।
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