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Hindi Now Uttar Pradesh • 30 Oct 2025, 07:19 pm
देश में शादियों को लेकर हुए सर्वे ने सभी को चौंका कर रख दिया है। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) की रिसर्च ब्रांच कैट रिसर्च एंड ट्रेड डेवलपमेंट सोसाइटी (CRTDS) के मुताबिक आगामी शादियों के सीजन 1 नवंबर से 14 दिसंबर 2025 के बीच देशभर में लगभग 46 लाख शादियां होंगी, जिनसे करीब 6.50 लाख करोड़ रुपये का व्यापार होने की संभावना है। कैट के राष्ट्रीय महामंत्री और दिल्ली के चांदनी चौक से सांसद प्रवीन खंडेलवाल ने बताया कि यह अध्ययन 15 से 25 अक्टूबर के बीच देश के 75 प्रमुख शहरों में किया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक भारत की “वेडिंग इकॉनमी” घरेलू व्यापार का मजबूत स्तंभ बन चुकी है, जो परंपरा, आधुनिकता और आत्मनिर्भरता का संगम है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “वोकल फॉर लोकल” विजन को साकार कर रही है।
क्या कहती है कैट की रिपोर्ट?
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1) कुल शादियां: 46 लाख
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2) अनुमानित कारोबार: 6.50 लाख करोड़ रुपये
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3) दिल्ली में शादियां: 4.8 लाख, व्यापार: 1.8 लाख करोड़ रुपये
पिछले सालों की तुलना में इस साल शादियों के खर्च में बढ़ोतरी का अनुमान
पिछले वर्षों की तुलना में इस बार प्रति शादी खर्च में भारी वृद्धि देखी गई है। इसका कारण बढ़ती आय, सोने-चांदी की कीमतों में उछाल और उपभोक्ताओं के भरोसे में इजाफा बताया जा रहा है। अध्ययन के मुताबिक अब शादी से जुड़े 70 फीसदी से अधिक सामान भारत में निर्मित होते हैं, जैसे शादियों के कपड़े, आभूषण, सजावटी सामान, बर्तन और कैटरिंग आइटम। वोकल फॉर लोकल वेडिंग्स अभियान से आयातित चीनी लाइटिंग, आर्टिफीशियल डेकोरेशन और विदेशी गिफ्ट आइटम्स जैसे सामानों की हिस्सेदारी घटी है। पारंपरिक कारीगरों, वस्त्र उद्योग और ज्वैलर्स को भारी ऑर्डर मिले हैं, जिससे स्थानीय विनिर्माण और हस्तकला को नया बल मिला है।
पूरी शादी में किस चीज में कितना हो रहा खर्च? क्या है हिस्सेदारी
प्रवीण खंडेलवाल ने बताया कि 6.5 लाख करोड़ रुपये के कारोबार में वस्त्र 10 फीसदी, आभूषण 15 फीसदी, इलेक्ट्रॉनिक्स 5 फीसदी, मिठाई व सूखे मेवे 5 फीसदी, गिफ्ट आइटम 4 फीसदी और अन्य सामान 6 फीसदी तक शामिल हैं। सेवाओं में कैटरिंग 10 फीसदी, इवेंट मैनेजमेंट 5 फीसदी, फोटोग्राफी 2 फीसदी, फ्लॉवर डेकोरेशन 4 फीसदी, म्यूजिकल ग्रुप्स 3 फीसदी और लाइट एंड साउंड में 3 फीसदी शामिल हैं।
दिल्ली, राजस्थान व गुजरात में लग्जरी-डेस्टिनेशन वेडिंग्स का बढ़ा चलन
क्षेत्रवार विश्लेषण करें तो दिल्ली, राजस्थान और गुजरात में लग्जरी व डेस्टिनेशन वेडिंग्स का चलन बढ़ा है। उत्तर प्रदेश और पंजाब में पारंपरिक आयोजनों पर भारी खर्च देखा जा रहा है, जबकि दक्षिण भारत में हेरिटेज व मंदिर शादियां पर्यटन को प्रोत्साहित कर रही हैं। प्रवीण
खंडेलवाल के मुताबिक इस शादी सीजन से एक करोड़ से अधिक अस्थायी व अंशकालिक रोजगार सृजित होंगे। डेकोरेटर, कैटरर, फ्लोरिस्ट, कलाकार, परिवहन व होटल उद्योग को सीधा लाभ होगा।
सोशल मीडिया और ऑनलाइन निमंत्रण पर होने वाले खर्च में हुई बढ़ोतरी
डिजिटल ट्रेंड्स ने भी जगह बना ली है। अब 1-2 फीसदी शादी का बजट सोशल मीडिया कंटेंट और ऑनलाइन निमंत्रण पर खर्च होता है। एआई-आधारित वेडिंग प्लानिंग टूल्स में 25 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। कैट का अनुमान है कि यह शादी सीजन सरकार को करीब 75,000 करोड़ रुपये टैक्स से राजस्व देगा।
भारतीय शादियां केवल सांस्कृतिक पर्व नहीं, आत्मनिर्भर भारत का इंजन
खंडेलवाल ने कहा कि भारतीय शादी अब केवल सांस्कृतिक पर्व नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत का आर्थिक इंजन है। 6.5 लाख करोड़ का यह कारोबार देश की आर्थिक मजबूती, संस्कृति और उद्यमिता का प्रतीक है। यह शादी सीजन वाकई एक भारत, समृद्ध भारत की भावना को साकार कर रहा है, जब लाखों जोड़े सात फेरे लेंगे, तो वे भारत की अर्थव्यवस्था, संस्कृति और आत्मनिर्भरता के सूत्रों को भी एक साथ जोड़ेंगे।
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