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Hindi Now Uttar Pradesh • 24 Jul 2025, 05:42 pm
लखनऊ हाईकोर्ट ने सीतापुर जिले के प्राइमरी स्कूलों के मर्जर पर फिलहाल रोक लगा दी है। कोर्ट ने आदेश दिया कि वर्तमान स्थिति को यथावत रखा जाए और कोई नया मर्जर न किया जाए। इस मामले की अगली सुनवाई 21 अगस्त को होगी। हाईकोर्ट की डबल बेंच ने यह फैसला गुरुवार को सुनवाई के दौरान दिया। इससे पहले 7 जुलाई को कोर्ट की सिंगल बेंच ने यूपी सरकार के स्कूलों के मर्जर के फैसले को सही ठहराया था, लेकिन अब डबल बेंच ने उस फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार से सख्त सवाल किए। कोर्ट ने पूछा कि जब बच्चों की स्कूलों में उपस्थिति की स्थिति स्पष्ट नहीं है और वे जाने को तैयार नहीं हैं तो सरकार किस आधार पर मर्जर कर रही है? न तो किसी प्रकार का सर्वे कराया गया और न ही कोई स्पष्ट योजना प्रस्तुत की गई है, फिर इस तरह का फैसला आखिर क्यों लिया गया? सरकार की ओर से दिए गए तर्कों को कोर्ट ने असंतोषजनक मानते हुए इस पर रोक लगा दी।
HC में मर्जर के खिलाफ तीन याचिकाएं
हाईकोर्ट में इस मुद्दे पर तीन विशेष अपीलें दाखिल की गई थीं। पहली अपील 17 बच्चों के अभिभावकों की ओर से और दूसरी 5 बच्चों की ओर से दाखिल की गई। तीसरी अपील नोटिस के जरिए कोर्ट के समक्ष लाई गई। याचिकाकर्ताओं ने सिंगल बेंच के 7 जुलाई के उस फैसले को रद्द करने की मांग की, जिसमें स्कूल मर्जर की याचिकाएं खारिज कर दी गई थीं। इन अपीलों पर सुनवाई के दौरान बच्चों और उनके अभिभावकों के साथ कई शिक्षक भी मौजूद रहे।
अपने ही बनाए नियमों को नजरअंदाज कर रही सरकार
शिक्षक दुर्गेश प्रताप सिंह ने बताया कि सरकार ने अपने ही बनाए नियमों को नजरअंदाज किया है। राज्य सरकार की नीति के मुताबिक प्रत्येक एक किलोमीटर की दूरी पर और 300 की आबादी पर एक स्कूल होना चाहिए। इसके बावजूद सरकार ने हजारों स्कूलों को नजदीकी उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में विलय करने का आदेश जारी कर दिया। उन्होंने कहा कि सरकार ने संसाधनों के बेहतर उपयोग और शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने का हवाला दिया, लेकिन इसका व्यावहारिक और सामाजिक प्रभाव नहीं सोचा गया।
16 जून को बेसिक शिक्षा विभाग ने मर्जर का आदेश किया था जारी
बेसिक शिक्षा विभाग ने 16 जून 2025 को यह आदेश जारी किया था, जिसे 1 जुलाई को सीतापुर की छात्रा कृष्णा कुमारी समेत 51 बच्चों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। एक अन्य याचिका 2 जुलाई को दाखिल की गई थी। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह निर्णय निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा कानून (RTE Act) का उल्लंघन करता है। हाईकोर्ट के इस आदेश से अब अन्य जिलों में भी मर्जर की प्रक्रिया पर असर पड़ सकता है, क्योंकि इसे नजीर के तौर पर लिया जा सकता है।
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