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Hindi Now Uttar Pradesh • 06 Jul 2025, 02:19 pm
दुनियाभर में हर दिन कई लोगों की जान सिर्फ इसलिए चली जाती है क्योंकि उन्हें समय पर खून नहीं मिल पाता है। हादसों या इमरजेंसी की स्थिति में रक्त की कमी एक गंभीर समस्या बन चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल करीब 118.5 मिलियन यूनिट रक्त की आवश्यकता होती है, लेकिन इसके मुकाबले सिर्फ 87 मिलियन यूनिट रक्त ही इकट्ठा हो पाता है। यह कमी जानलेवा साबित हो रही है। भारत में भी स्थिति चिंताजनक है। यहां हर दिन लगभग 12,000 मरीज समय पर रक्त न मिलने के कारण दम तोड़ देते हैं। देश को हर साल 1.5 करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत होती है, लेकिन विभिन्न माध्यमों से सिर्फ एक करोड़ यूनिट ही इकट्ठा हो पाता है। अब चिंता करने की जरूरत नहीं है। जापान ने इसका तोड़ निकाल लिया है। जापान ने कृतिम रक्त तैयार करने में सफलता हासिल की है। यह रक्त सभी लोगों में चढ़ाया जा सकता है। इसमें ब्लड ग्रुप की चिंता करने की जरूरत नहीं है। यह सभी के लिए अनुकूल है।
बताया जा रहा है कि जापान की नारा मेडिकल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा कृत्रिम रक्त तैयार किया है, जिसे किसी भी ब्लड ग्रुप के व्यक्ति को बिना क्रॉस-मैचिंग के चढ़ाया जा सकता है। इस आर्टिफिशियल ब्लड को लंबे समय तक बिना रेफ्रिजरेशन के सुरक्षित भी रखा जा सकता है। यह खासकर आपातकालीन चिकित्सा के दौरान अत्यंत उपयोगी साबित हो सकता है। शोधकर्ताओं ने मार्च में इस कृत्रिम रक्त का पहला क्लीनिकल ट्रायल 16 स्वस्थ वयस्कों पर किया है, जिन्हें 100 से 400 मिलीलीटर तक कृत्रिम रक्त दिया गया है। अब इस प्रयोग के अगले चरण में इसकी प्रभावों और सुरक्षा की विस्तार से जांच की जाएगी। प्रारंभिक रिपोर्टों में अभी तक किसी गंभीर दुष्प्रभाव का उल्लेख नहीं किया गया है, जिससे वैज्ञानिकों को उम्मीद बंधी है कि यह तकनीक जल्द ही व्यवहार में लाई जा सकती है। इस कृत्रिम रक्त की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें ब्लड ग्रुप निर्धारण वाले पारंपरिक मार्कर नहीं होते हैं। इसलिए यह रक्त सभी प्रकार के रोगियों को दिया जा सकता है। यह वायरस-फ्री होता है और इसकी शेल्फ लाइफ भी प्राकृतिक रक्त की तुलना में कहीं अधिक होती है।
इंग्लैंड की ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एश टॉय का मानना है कि ह्यूमन हीमोग्लोबिन आधारित इस नए प्रयोग में बड़ी संभावनाएं हैं। हालांकि पहले भी ऐसे प्रयास हुए हैं, लेकिन सुरक्षा, स्थायित्व और ऑक्सीजन वहन क्षमता जैसी चुनौतियों के कारण वह व्यावसायिक सफलता नहीं पा सके। यदि यह परीक्षण सफल रहता है तो जापान 2030 तक इस तकनीक को वास्तविक चिकित्सा प्रणाली में अपनाने वाला दुनिया का पहला देश बन सकता है। नारा मेडिकल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हिरोमी साकाई के मुताबिक यह तकनीक रक्त आधान प्रक्रिया को तेजी से और सुरक्षित रूप से करने में मदद करेगी। शुरुआती नतीजे सकारात्मक हैं और यह आविष्कार भविष्य में लाखों लोगों की जान बचा सकता है।
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