Explainer: PM मोदी का घाना में मास्टरस्ट्रोक, दुश्मन देशों की उड़ी नींद! चीन की क्यों बढ़ी टेंशन?

Curated By: editor1 | Hindi Now Uttar Pradesh • 04 Jul 2025, 04:55 pm
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घाना में पीएम मोदी की ऐतिहासिक यात्रा से भारत ने ग्लोबल साउथ में अपनी कूटनीतिक मौजूदगी को और मज़बूत कर लिया है। 30 साल बाद भारत का कोई प्रधानमंत्री वहां पहुँचा है।

2 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी घाना की राजधानी पहुँचे, उनका ज़ोरदार स्वागत किया गया। ये यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक है, क्योंकि इसमें भारत और घाना ने द्विपक्षीय संबंधों को “व्यापक साझेदारी” का दर्जा दिया। सबसे महत्वपूर्ण करार हुआ है, रेयर अर्थ मिनरल्स की माइनिंग को लेकर। ये खनिज आज की हाइटेक इंडस्ट्री, जैसे इलेक्ट्रिक वाहनों, स्मार्टफोन और रक्षा उपकरणों के लिए आवश्यक हैं। अब तक इन पर चीन का प्रभुत्व था, लेकिन भारत-घाना डील ने चीन के वैश्विक दबदबे को सीधी चुनौती दी है।  


मोदी ने किया संसद को संबोधित

इस यात्रा के दौरान मोदी ने घाना की संसद को भी संबोधित किया। उन्होंने कहा, “भारत, घाना का सिर्फ साझेदार नहीं, तरक्की का सहयात्री भी है।” भारत ने घाना के डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर को मज़बूत करने, UPI जैसी डिजिटल पेमेंट टेक्नोलॉजी को लागू करने, और आतंकवाद के खिलाफ मिलकर काम करने का भी भरोसा दिया। भारत और घाना के बीच व्यापार पहले ही 3 अरब डॉलर पार कर चुका है, और भारतीय कंपनियां 900 से अधिक प्रोजेक्ट्स में 2 अरब डॉलर से ज़्यादा का निवेश कर चुकी हैं। प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि दोनों देश अगले 5 वर्षों में व्यापार को दोगुना करने का लक्ष्य रखेंगे।


प्रधानमंत्री मोदी को सबसे बड़ा सम्मान

इस यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी को घाना का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ घाना” भी दिया गया। साथ ही उन्होंने स्थानीय भारतीय समुदाय से मुलाकात की। घाना की सड़कों पर “मोदी-मोदी” और “भारत माता की जय” के नारों की गूंज भी सुनाई दी। बता दें कि चीन की चिंता सिर्फ खनिज संसाधनों तक सीमित नहीं है। भारत की अफ्रीका में बढ़ती पकड़, डिजिटल टेक्नोलॉजी के एक्सपोर्ट, रक्षा सहयोग और आर्थिक निवेश ने चीन की नीति-निर्माण प्रक्रिया में खलबली मचा दी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि ये यात्रा भारत के लिए सिर्फ एक द्विपक्षीय यात्रा नहीं, बल्कि ग्लोबल साउथ में नेतृत्व के लिए बड़ी छलांग है। घाना के विदेश मंत्री सैमुअल अब्लाक्वा ने इसे “घाना के लिए गेम-चेंजर” बताया, जबकि भारत ने संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की मांग को फिर से दोहराया, जिस पर घाना ने समर्थन जताया।


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