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Hindi Now Uttar Pradesh • 31 Jul 2025, 12:04 pm
महाराष्ट्र के मालेगांव ब्लास्ट केस में एनआईए की विशेष अदालत ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर समेत सातों आरोपियों को बरी कर दिया है। इस मामले में जिन लोगों को आरोपी बनाया गया था, उनमें पूर्व भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा, कर्नल प्रसाद पुरोहित, रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर चतुर्वेदी, समीर कुलकर्णी और सुधाकर धर द्विवेदी शामिल थे। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जांच एजेंसियां आरोप साबित करने में नाकाम रहीं और इसलिए सभी आरोपियों को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए।
साल 2008 में हुए धमाके में गई थी 6 लोगों की जान
29 सितंबर 2008 को मालेगांव में एक बम धमाका हुआ था, जिसमें 6 लोगों की मौत हुई थी और करीब 100 लोग घायल हो गए थे। करीब 17 साल चली सुनवाई के बाद विशेष न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने कहा कि यह साबित नहीं हो सका कि बम एक मोटरसाइकिल में रखा गया था और यह भी नहीं साबित हो पाया कि वह मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा की थी। इसी तरह यह प्रमाण नहीं मिला कि कर्नल पुरोहित ने बम बनाने में कोई भूमिका निभाई थी। इस मामले में शुरुआती जांच महाराष्ट्र एटीएस ने की थी, लेकिन 2011 में यह केस राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए को सौंप दी गई थी। एनआईए ने 2016 में चार्जशीट दाखिल की थी। इस दौरान केस की सुनवाई में कई बार जज बदले गए और तीन अलग-अलग जांच एजेंसियों ने इस पर काम किया।
केस में कई खामियां, कोर्ट की अहम टिप्पणी
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी आरोपी को केवल धारणा या नैतिक आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा की अनुमति नहीं देता। न्यायिक प्रक्रिया में सजा के लिए ठोस और पुख्ता सबूतों की आवश्यकता होती है, जो इस केस में नहीं मिले। अदालत ने मामले में हुई कई जांच खामियों की ओर भी इशारा किया। कोर्ट ने कहा कि घटनास्थल पर पंचनामा सही से नहीं किया गया, वहां से फिंगरप्रिंट नहीं लिए गए और मोटरसाइकिल के चेसिस नंबर को कभी रिकवर नहीं किया जा सका। साध्वी प्रज्ञा के स्वामित्व की बात भी प्रमाणित नहीं हो सकी। इसके अलावा कोर्ट ने घायल लोगों की संख्या में भी संशोधन किया और बताया कि शुरू में बताए गए 101 घायलों के बजाय वास्तव में 95 लोग घायल हुए थे, जबकि कुछ मेडिकल प्रमाणपत्रों में हेरफेर किए जाने के संकेत मिले हैं। कोर्ट ने अपने इस ऐतिहासिक फैसले के साथ ही एक लंबे और विवादित मामले पर पर अपनी अंतिम फैसला सुना दिया है।
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