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Hindi Now Uttar Pradesh • 08 Jul 2025, 05:14 pm
उत्तर प्रदेश में स्कूल मर्जर के खिलाफ विवाद बढ़ता जा रहा है। इसको लेकर लगातार हर जिले में प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। इतना ही नहीं यह विवाद हाई कोर्ट तक पहुंच गया है। हालांकि हाई कोर्ट प्रदेश सरकार को राहत मिल गई है। कोर्ट ने मामले में दाखिल सभी याचिकाएं रद्द कर दी हैं। कोर्ट ने 50 से कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को नजदीकी उच्च प्राथमिक विद्यालयों में विलय वाले सरकार के फैसले को संवैधानिक और जनहित में करार दिया है। अदालत का यह फैसला सरकार के फैसले को स्वीकृति मिलने जैसा माना जा रहा है।
कोर्ट ने क्या कहा?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने यूपी सरकार के स्कूल मर्जर फैसले के खिलाफ दायर सभी याचिकाएं खारिज कर दी हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय अनुच्छेद 21ए का उल्लंघन नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य संसाधनों का बेहतर उपयोग और बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना है। कोर्ट ने माना कि छोटे सरकारी स्कूलों में न पर्याप्त शिक्षक हैं और न ही पर्याप्त सुविधाएं हैं। सरकार की ओर से पेश अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि कम छात्र संख्या वाले प्राथमिक विद्यालयों को नजदीकी उच्च प्राथमिक विद्यालयों से जोड़ा गया है ताकि ताकि टीचर्स, पुस्तकालय, खेलकूद और स्मार्ट क्लास जैसी सभी सुविधाएं एक जगह मिल सकें।
विभागीय अधिकारियों ने क्या कहा?
उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि स्कूलों का मर्जर छात्रों के हित में है। राज्य में 1.40 लाख सरकारी प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूल हैं, जिनमें से 29,000 में 50 से कम छात्र हैं। इन स्कूलों में करीब 89,000 शिक्षक तैनात हैं। योजना है कि कम नामांकन वाले स्कूलों के छात्रों को नजदीकी बेहतर सुविधाओं वाले बड़े स्कूलों में स्थानांतरित किया जाए। सरकार के इसी फैसले को चुनौती देते हुए सीतापुर जिले के 51 छात्रों ने अपने अभिभावकों के माध्यम से इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। राज्य सरकार ने यह आदेश 16 जून को जारी किया था, जिसको लेकर विवाद खड़ा हुआ है।
क्या है याचिकाकर्ताओं का तर्क?
याचिकाकर्ताओं ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में दलील दी कि राज्य सरकार का स्कूल मर्जर संबंधी आदेश संविधान के अनुच्छेद 21ए का उल्लंघन है। अधिवक्ता एल.पी. मिश्रा और गौरव मेहरोत्रा ने कहा कि स्कूल बंद होने से बच्चों को दूर-दराज के विद्यालयों तक जाना पड़ेगा, जिससे उनकी शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने तर्क दिया कि यह फैसला बच्चों के हितों को कमजोर करता है। वहीं राज्य सरकार ने अपने फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि यह कदम संसाधनों के बेहतर उपयोग और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उठाया गया है। सरकार ने कोर्ट को बताया कि इससे ड्रॉपआउट दर में भी कमी आएगी और शैक्षिक संसाधनों का समुचित वितरण संभव होगा।
क्या सरकार बदलेगी अपना फैसला?
सरकारी प्राथमिक विद्यालयों के मर्जर वाले यूपी सरकार के फैसले के खिलाफ चौतरफा विरोध जारी है। इसके खिलाफ पिछले 20 दिनों से सभी जनपदों में प्रदर्शन जारी हैं। विपक्षी दलों समेत स्कूलों के कर्मचारी और स्कूली संगठन आंदोलन कर रहे हैं। अब सवाल यह है कि क्या इन विरोध प्रदर्शनों का सरकार पर कोई असर पड़ेगा? तो जानकारों का कहना है कि सरकार का फैसला पलटना मुश्किल लगता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि तमाम विरोध प्रदर्शनों के बाद भी सरकार का फैसला अभी तक अडिग है। अब कोर्ट से सरकार के खिलाफ याचिकाएं खारिज होने के बाद फैसला बदलने की संभावना न के बराबर लगती है। हाई कोर्ट का फैसला सरकार के फैसले को स्वीकृति मिलने जैसा माना जा रहा है और इससे सरकार के फैसले को और बल मिल गया है।
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