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Hindi Now Uttar Pradesh • 22 Jul 2025, 01:18 pm
उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए खुशखबरी है। यहां अब लोगों को जमीनों के दाखिल खारिज के लिए चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। अब अधिकतम डेढ़ माह के भीतर ही दाखिल खारिज के कागजात लोगों को मिल जाएंगे। दरअसल राज्य सरकार ने सभी जिलों को 45 दिनों के भीतर दाखिल खारिज के मामले निपटाने के सख्त निर्देश जारी किए हैं। जमीनों के दाखिल खारिज के मामलों में देरी करने पर मंडलायुक्त और जिलाधिकारी जवाबदेह होंगे। राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि राजस्व संहिता-2006 की धारा 34 और 35 के अंतर्गत गैर-विवादित नामांतरण के मामलों का निस्तारण 45 दिनों के भीतर और विवादित मामलों का निस्तारण 90 दिनों के भीतर करना अनिवार्य होगा। हाईकोर्ट द्वारा दाखिल खारिज में अनावश्यक देरी पर सख्त नाराजगी जाहिर किए जाने के बाद यह फैसला लिया गया है। प्रमुख सचिव (राजस्व) पी. गुरुप्रसाद ने इस संबंध में शासनादेश जारी करते हुए सभी मंडलायुक्तों और जिलाधिकारियों को निर्देश जारी किए हैं।
शासन की ओर से बताया गया कि समय-समय पर इस विषय में शासनादेश जारी किए जाते रहे हैं, फिर भी कई जिलों में इसका पालन नहीं हो रहा है। नामांतरण के मामलों में अनावश्यक विलंब किया जा रहा है। इससे बड़ी संख्या में रिट याचिकाएं हाईकोर्ट में दाखिल हो रही हैं। अब साफ कर दिया गया है कि धारा-34 के अंतर्गत दर्ज सभी प्रकरण, जिनका पंजीकरण नहीं हुआ है, उन्हें आरसीसीएमएस पोर्टल पर अनिवार्य रूप से दर्ज किया जाए।
राजस्व विभाग ने यह भी निर्देश दिया है कि यदि कोई कर्मचारी या अधिकारी जानबूझकर नामांतरण के प्रार्थनापत्रों को लंबित रखता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। दाखिल खारिज के अविवादित मामलों में किसी भी स्थिति में 45 दिनों से अधिक का समय नहीं लिया जाना चाहिए। विशेष रूप से हाईकोर्ट द्वारा आदेशित मामलों की दैनिक आधार पर सुनवाई की जाएगी और उनके निस्तारण के लिए तिथि नियत की जाएगी। जिलाधिकारी और मंडलायुक्त अपने-अपने स्तर पर लंबित मामलों की समीक्षा करेंगे और नामांतरण को समयबद्ध ढंग से निपटाने के लिए स्पष्ट कार्ययोजना बनाएंगे।
इसके अतिरिक्त तहसीलों में नामांतरण वादों की सुनवाई कर रहे पीठासीन अधिकारियों को भी इन निर्देशों का पालन करना होगा। यदि कोई अधिकारी निर्देशों की अवहेलना करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई का प्रस्ताव शासन और राजस्व परिषद को भेजा जाएगा। गौरतलब है कि जब जमीन की बिक्री, दान या उत्तराधिकार के माध्यम से स्वामित्व बदलता है, तो राजस्व रिकॉर्ड में नए मालिक का नाम दर्ज किया जाता है। इसी प्रक्रिया को दाखिल खारिज कहा जाता है। यह न केवल कानूनी दस्तावेज के रूप में कार्य करता है, बल्कि भविष्य में संपत्ति के विवाद से बचाने के लिए भी जरूरी होता है।
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